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ता आ च॑रन्ति सम॒ना पु॒रस्ता॑त्समा॒नतः॑ सम॒ना प॑प्रथा॒नाः। ऋ॒तस्य॑ दे॒वीः सद॑सो बुधा॒ना गवां॒ न सर्गा॑ उ॒षसो॑ जरन्ते ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā ā caranti samanā purastāt samānataḥ samanā paprathānāḥ | ṛtasya devīḥ sadaso budhānā gavāṁ na sargā uṣaso jarante ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ताः। आ। च॒र॒न्ति॒। स॒म॒ना। पु॒रस्ता॑त्। स॒मा॒नतः॑। स॒म॒ना। प॒प्र॒था॒नाः। ऋ॒तस्य॑। दे॒वीः। सद॑सः। बु॒धा॒नाः। गवा॑म्। न। सर्गाः॑। उ॒षसः॑। ज॒र॒न्ते॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:51» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:2» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (पुरस्तात्) पुरस्तात् कृत ब्रह्मचर्य्य परीक्षा अर्थात् प्रथम ब्रह्मचर्य्य की परीक्षा जिनकी की गयी ऐसी (समानतः) सदृश पतियों से (समना) तुल्य गुण, कर्म और स्वभाववाली (ऋतस्य) सत्य की (देवीः) जाननेवाली पण्डिता (पप्रथानाः) विस्तीर्ण विद्या और सौन्दर्य्य आदि गुणयुक्त कन्या (सदसः) श्रेष्ठ पुरुषों को (बुधानाः) ज्ञान से जगाती (उषसः) प्रातर्वेलाओं के (समना) समान और (गवाम्) गौओं के (सर्गाः) उत्पन्न हुए वृन्दों के (न) समान (आ, चरन्ति) आचरण करती और (जरन्ते) स्तुति करती हैं (ताः) उनको विवाहो ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो शिक्षा को ग्रहण किये हुए, रूप और कान्ति आदि उत्तम गुणों से युक्त, विदुषी, ब्रह्मचारिणी कन्या होवें उन्हीं को यथायोग्य विवाहो ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! या पुरस्तात् कृतब्रह्मचर्य्यपरीक्षाः समानतः समना ऋतस्य देवीः पप्रथानाः सदसो बुधाना उषसः समना गवां सर्गा ना चरन्ति जरन्ते ता उपयच्छन्तु ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) (आ) (चरन्ति) (समना) समानाः। अत्र सुपां सुलुगिति जसो लुक्। (पुरस्तात्) (समानतः) सदृशेभ्यः पतिभ्यः (समना) समानगुणकर्मस्वभावाः (पप्रथानाः) विस्तीर्णविद्यासौन्दर्यादिगुणाः (ऋतस्य) सत्यस्य (देवीः) विदुष्यः (सदसः) सभ्यान् (बुधानाः) प्रबोधयन्त्यः (गवाम्) (न) इव (सर्गाः) उत्पद्यमानाः (उषसः) प्रातर्वेलाः (जरन्ते) स्तुवन्ति ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! गृहीतशिक्षा रूपलावण्यादिशुभगुणाढ्या विदुष्यो ब्रह्मचारिण्यः स्युस्ता एव यथायोग्यं विवहन्तु ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! सुशिक्षित रूपवान, कांतिमान, शुभगुणयुक्त विदुषी ब्रह्मचारिणी कन्येबरोबरच विवाह करावा. ॥ ८ ॥